अब मैं राशन की क़तारों में नज़र आता हूँ
अपने खेतों से बिछडने की सज़ा पाता हूँ
इतनी महँगाई के बाज़ार से कुछ लाता हूँ
अपने बच्चों में उसे बाँट के शरमाता हूँ
अपनी नीँदों का लहू पोँछने की कोशिश में
जागते-जागते थक जाता हूँ, सो जाता हूँ
कोई चादर समझ के खीँच न ले फिर से 'खलील'
मैँ क़फ़न ओढ के 'फ़ुटपाथ्' पे सो जाता हूँ
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Vocabulary:
क़तारों = in queue
बिछडने = separation
Search Strings:
Lyrics, गज़ल, Ghazal, Gazal, जगजीत सिंह, जगजीत सिंग, Jagjit Singh,
Ab mein raashan ki kataron mein najar
शुक्रवार, 10 अगस्त 2007
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