तुमने सूली पे लटके जिसे देखा होगा
वक़्त आयेगा वही शख़्स मसीहा होगा
ख़्वाब देखा था कि सहरा में बसेरा होगा
क्या ख़बर थी कि यही ख़्वाब तो साया होगा
मैं फ़िज़ाओं में बिखर जाऊँगा ख़ुश्बू बन कर
रंग होगा न बदन होगा न चेहरा होगा
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बुधवार, 21 अक्टूबर 2015
मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने
मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने
अब गुज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने
मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन
सोचता हूँ मुझे आये थे उठाने कितने
जिस तरह मैं ने तुझे अपना बना रखा है
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने
तुम नया ज़ख़्म लगाओ तुम्हें इस से क्या है
भरने वाले हैं अभी ज़ख़्म पुराने कितने
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अब गुज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने
मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन
सोचता हूँ मुझे आये थे उठाने कितने
जिस तरह मैं ने तुझे अपना बना रखा है
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने
तुम नया ज़ख़्म लगाओ तुम्हें इस से क्या है
भरने वाले हैं अभी ज़ख़्म पुराने कितने
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